आयुर्वेद पर केंद्रित कुमाउनी पुस्तक: रोगनाशी जड़ी बूटियाँ
साथियों, आज हम पिथौरागढ़ के लेखक व समाजसेवी डॉ. पीतांबर अवस्थी द्वारा लिखित आयुर्वेदिक पुस्तक रोगनाशी जड़ी- बूटियाँ के विषय में चर्चा करते हैं-
पुस्तक के विषय में-
रोगनाशी जड़ी- बूटियाँ
(लेख संग्रह)
डॉ. पीताम्बर अवस्थी की कुमाउनी में लिखित यह पुस्तक जड़ी- बूटियों पर जानकारी देने वाली अत्यंत महत्वपूर्ण पुस्तक है। इस पुस्तक का प्रकाशन ज्ञान प्रकाश संस्कृत पुस्तकालय, पिथौरागढ़ से वर्ष 2021 में हुआ है। इस पुस्तक में कुल 55 रोगनाशी जड़ी- बूटियों की जानकारी कुमाउनी में प्रदान की गई है। इन जड़ी बूटियों में तुलसी, नीम, आंवला, पीपल, हरड़, गिलोय, एलोवेरा, ईसबगोल, काली मिर्च, लौंग, अलसी, अमलतास, नाग केशर, शिलाजीत, अश्वगंधा, कुटकी, भोजपत्र, किल्मोड़ा, काफल, सतावर, घिंघारू, क्वेराल आदि प्रमुख हैं। औषधियों के विषय में विस्तृत जानकारी देने वाली और आयुर्वेद की महत्ता को द्विगुणित करने वाली यह एक उपयोगी पुस्तक है।
किताब का नाम- रोगनाशी जड़ी- बूटियाँ
विधा- लेख
लेखक- डॉ. पीतांबर अवस्थी
प्रकाशक- ज्ञान प्रकाश संस्कृत पुस्तकालय, पिथौरागढ़
प्रकाशन वर्ष- 2021
लेखक के विषय में-
डॉ. पीताम्बर अवस्थी
डॉ. पीताम्बर अवस्थी सोरघाटी के लब्ध प्रतिष्ठित रचनाधर्मियों में एक हैं। डॉ. पीताम्बर अवस्थी का जन्म 1 मार्च, 1961 को अस्कोट ( पिथौरागढ़ ) के अवस्थीगांव में हुआ। आपके पिता का नाम श्री जयदेव अवस्थी और माता का श्रीमती हेमंती देवी है। आपने हिंदी, संस्कृत, समाजशास्त्र, हिंदी, राजनीति विज्ञान, इतिहास विषयों से एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की है। शोध कार्य में रूचि होने के कारण आपने पीएचडी भी की।
शिक्षण कार्य के अलावा डॉ. अवस्थी जनपद की सामाजिक गतिविधियों में भी निरंतर सक्रिय रहते हैं। आपने पिथौरागढ़ में संस्कृत पुस्तकालय की स्थापना की है। आप विगत 15 वर्षों से नशामुक्ति, बेटी बचाओ, पर्यावरण संरक्षण, शिक्षा एवं साहित्य संवर्धन, पशु हत्या निषेध आदि अभियानों का संचालन करते रहे हैं। इस कार्य में उनकी अर्द्धांगिनी श्रीमती मंजुला अवस्थी भी उनका सहयोग करती हैं। डॉ. अवस्थी गरीब और मेधावी विद्यार्थियों को अपनी माता जी के नाम पर हरूली आमा छात्रवृत्ति योजना भी प्रदान कर रहे हैं।
डॉ. पीताम्बर अवस्थी शिक्षण व सामाजिक कार्यों के साथ-साथ लेखन में भी निरंतर सक्रिय रहते हैं। कुमाउनी में परछाई (कविता संग्रह, 2018), पंचप्रिया ( खंडकाव्य, 2020) व हिंदी में मंजुल (कविता संग्रह, 2015), हिमालय (2018), उत्तराखंड के परंपरागत जलस्रोत (2019) आदि सहित एक दर्जन पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में आप रा० इ० का० दौबांस ( पिथौरागढ़) में शिक्षण कार्य कर रहे हैं।
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