कविता- हिंदी पढ़ो, हिंदी लिखो, हिंदी बोलो हिंदी पढ़ो, हिंदी लिखो, हिंदी बोलो, अज्ञानता के पर्दे पल में धो लो।  हिंदी हमारी माता है, माता से बढ़कर दूजा नहीं।  अपनी भाषा को अपना समझो, इससे बढ़कर कोई पूजा नहीं।  हिंदी पढ़ो, हिंदी लिखो, हिंदी बोलो, अज्ञानता के पर्दे पल में धो लो।  साहित्य अनौखा है