प्रेम दारोगा जी थाने में बैठे हुए थे। एक आरोपी को उनके सामने लाया गया तो, उन्होंने आरोपी को डांटते हुए पूछा- “तुमने उस लड़की के मुंह पर तेजाब क्यों फैंका ?” आरोपी ने सिर ऊंचा करते हुए दृढ़ता से कहा- “क्योंकि मैं उससे प्रेम करता था….।”
वीर सिपाही रघुवर गाँव के इंटर कॉलेज में कक्षा बारह में पढ़ता था। वह पढ़ाई-लिखाई में औसत दर्जे का था, लेकिन लड़ने-झगड़ने में माहिर था। उसे फौज में भर्ती होने का शौक था। एक दिन की बात है, रघुवर ने
प्रेम की होली होली पर गांव- बाजार का माहौल गरमाया हुआ था। जहाँ- तहाँ रंग से पुते होल्यार ही होल्यार नजर आ रहे थे। होली है- होली है की ध्वनि से वातावरण गुंजायमान हो रहा था। राजेश, मदन और राहुल भी अपनी- अपनी पिचकारी से लोगों को भिगा रहे थे। अचानक उन्होंने देखा कि उनका
एक असफल प्रेमी की प्रेमकथा आज मैं पूरे बत्तीस साल का हो गया हूँ। साथ-ही- साथ एक अकलमंद और सयाना लौंडा भी। इसलिए आज मैं पूरे होशो-हवास में यह निर्णय ले रहा हूँ कि आज के बाद मैं किसी कुंवारी लड़की की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखूंगा और ना ही किसी कन्या के सामने प्रणय
नीली साड़ी वाला चांद जब मैं छोटा बच्चा था तो रात को मां से चांद दिखाने की जिद किया करता था। माँ मना करती तो मैं रोने लगता था। मजबूर होकर माँ को चांद दिखाने मुझे छत पर ले जाना पड़ता था। तब माँ मेरा मुंह चांद की ओर करके गुनगुनाती थी- “चंदा मामा आ
हमसाया “तुम ! यहाँ भी।” “हाँ, बिल्कुल ! जहाँ तुम, वहाँ मैं।” “अच्छा, ऐसा है क्या ?” ” बिल्कुल, तुम्हारा हमसाया जो हूँ।” “चुप पागल !” और ऐसा कहते ही वह खिल उठी। सूरजमुखी नहीं थी वह और न था वह सूरज, फिर भी न जाने क्यों उसके आते
सोलह कलाओं वाला चांद उसने नजर झुकाई पलकें उठाई निहारती रही छत से। कुछ देर बाद भंवरे-सी गुनगुनाहट हवा में बिखर गई। वह मुस्कुराई आगे बढ़ी कहने लगी- “बाय।” उस हाथ से जिसमें क्षमता थी कई लोगों का भाग्य बदलने की। फिर उसी हाथ से संभाला उसने दुपट्टा और मुस्कुराती हुई उतर गई