निशा पुनेठा और उनकी ऐपण कला हुनरमंद व्यक्ति किसी भी परिचय का मोहताज नहीं होता। पिथौरागढ़ निवासी निशा पुनेठा का हुनर ही तो है, जिसके बल पर इनके द्वारा बनाए गए चित्र एकदम जीवंत प्रतीत होते हैं और इन लोककला आधारित चित्रों के माध्यम से ही निशा जी को उत्तराखंड में एक
ईशा आर्या और उसकी पिरुल की टोकरियाँ प्रतिभा और रचनात्मकता किसी उम्र की मोहताज नहीं होती। राजकीय इंटर कालेज ल्वेशाल की नवीं की छात्रा ईशा आर्या ने अपनी बनाई पिरुल (चीड़) की टोकरियों से यह बात सच साबित की है। ईशा की बनाई पिरुल की टोकरियाँ न सिर्फ
दीपावली पर विशेष- 5 प्रेेम कविताएँ 1. दीये ने जलने से इनकार कर दिया इस बार दीपावली में दीये ने जलने से इनकार कर दिया। उसे आदत हो चुकी थी उनके नर्म हाथों के स्पर्श की। उसे आदत हो चुकी थी उनके चेहरे की रोशनी को खुद में समेट लेने की।
उत्तराखंड में बोली जाने वाली प्रमुख भाषाएँ एवं बोलियाँ उत्तराखंड में मुख्यतः पहाड़ी बोली का प्रयोग किया जाता है और यह पहाड़ी बोली हिंदी की उपभाषा है। पहाड़ी उपभाषा के अंतर्गत मुख्यतः 3 बोलियाँ आती हैं- गढ़वाली, कुमाउनी और नेपाली। बोलने और जानने वालों की संख्या, इतिहास और साहित्य सृजन को ध्यान
पुतले हैं तैयार,चलो दशहरा देखने यार अल्मोड़ा का दशहरा महोत्सव भारत में ही नहीं वरन पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इस प्रसिद्धि का प्रमुख कारण यहाँ बनाये जाने वाले रावण परिवार के पुतले हैं। यहाँ के पुतले कलात्मकता और भव्यता के साथ उन कलाकारों के द्वारा निर्मित होते हैं, जो
उत्तराखंड राज्य के प्रतीक चिन्ह उत्तराखंड के राज्य चिन्ह और प्रतीकों का निर्धारण राज्य गठन के बाद वर्ष 2001 में किया गया। उत्तराखंड के प्रमुख राज्य प्रतीक चिन्ह- 1. राजकीय चिन्ह- तीन पर्वत चोटियाँ, मध्य में गंगा की 4 लहरें उत्तराखंड राज्य
उत्तराखंड के जनपद उत्तराखंड कुमाऊ मंडल तथा गढ़वाल मंडल नाम के दो मंडलों में बंटा है। कुमाऊ मंडल की स्थापना 1854 में हुई तथा इसका मुख्यालय नैनीताल है। गढ़वाल मंडल की स्थापना 1969 में हुई और इसका मुख्यालय पौड़ी में है। उत्तराखंड राज्य में कुल 13 जिले
उत्तराखंड:संक्षिप्त परिचय 1. राजनैतिक परिचय- उत्तरांचल का गठन 9 नवम्बर, 2000 को देश के 27 वें तथा हिमालयी राज्यों के क्रम में 11 वें राज्य के रूप में किया गया। 31 दिसंबर, 2006 तक इसका नाम उत्तरांचल रहा, तत्पश्चात् 1 जनवरी, 2007 से इसका नाम बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया। वर्तमान
जन्मदिन पर विशेष: – नाम छि अनपढ़, काम छि पढ़न-ल्यखन: शेर सिंह बिष्ट 3 अक्टूबर, 1933 में अल्मोड़ा में जन्मी शेर सिंह बिष्ट ज्यूल कुमाउनी कविता कें एक नई मुकाम पर पुजा। उन कम पढ़ी-लेखी छि और आपन उपनाम ‘अनपढ़’ लेखी करछी, बावजूद येक उनरि रचना बतूछीन कि ऊं कतू जबरदस्त विद्वान छि।