देव सतीकि कुमाउनी कविता १. पहाड़ै बात हरि भरि सारा म्येरि पहाड़ों की धारा दिन बानरूल रात सुवरूक उज्जाड़ा गर्मिक दिनों में पाणिक मारमारा खेत बाजि हैगीं हरि भरि सारा के कुनू ददा आपुण बाता दिन नै चैना नींद नै राता जंगोव कटिगी महल बनिगी आब नै रैगी खेत सीढ़ीदारा धोंतिले
भुवन बिष्टकि कुमाउनी कविता १. सरस्वती बंदना दैण हैजा माता मेरी सरस्वती, दिये माता भौल बुलाण भलि मति। एक हाथ किताब त्यौर, एक हाथ छौ वीणा। मैं बालक अबोध अज्ञानी, आयूँ मैं तेरी शरणा।
ललित शौर्य कि कुमाउनी कविता १. शब्द ब्रह्म हुनि मैं लड़ते रूंल आज, भोल और पोर ही जाणेक तुम गोलि चलाला मैं कलम चलूल तुम मकें मार सकछा मेर शब्दन कै नी मार सकला कभै किलैकि शब्द ब्रह्म हुनी और यो बात ध्यान धरिया जो ब्रम्ह छू उ अमर छू….।