गुमानी पंत और उनकी 5 चयनित कुमाउनी कविताएँ
गुमानी पंत और उनकी 5 चयनित कुमाउनी कविताएँ
1. महाकवि गुमानी पंत
पं० गुमानी पन्त का जन्म सन 1790 में काशीपुर में हुआ था। इनका पैतृक निवास स्थान पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट का उपराड़ा गाँव था। इनके पिता का नाम देवनिधि पंत और माता का नाम मंजरी देवी था। गुमानी पंत का मूल नाम लोकरत्न पन्त था। कहा जाता है कि काशीपुर के महाराजा गुमान सिंह की सभा में राजकवि रहने के कारण इनका नाम लोकरत्न ‘गुमानी’ पड़ा और बाद में ये इसी नाम से प्रसिद्ध हुये। ये टिहरी नरेश सुदर्शन शाह के दरबार में मुरक कवि के नाम से भी प्रसिद्ध रहे। गुमानी जी ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अपने चाचा श्री राधाकृष्ण पन्त से और बाद में धौलछीना,अल्मोड़ा के सुप्रसिद्ध ज्योतिषी पण्डित हरिदत्त पन्त से ग्रहण की। इसके आगे की शिक्षा हेतु आप इलाहाबाद चले आए। इसके पश्चात आप ज्ञान की खोज में हिमालयी क्षेत्रों में भ्रमण करते रहे। कहा जाता है कि देवप्रयाग क्षेत्र की किसी गुफा में साधनारत गुमानी पंत को भगवान राम के दर्शन हो गये और भगवान राम ने गुमानी पंत से प्रसन्न होकर सात पीढ़ियों तक का आध्यात्मिक ज्ञान और विद्या का वरदान दिया। गुमानी पंत को हिंदी, नेपाली, उर्दू, कुमाउनी, अंग्रेजी, फारसी, ब्रजभाषा, संस्कृत आदि कई भाषाओं का ज्ञान था।
गुमानी जी खड़ी बोली के पहले कवि हैं। वैसे भारतेंदु हरिशचन्द्र को हिंदी साहित्य जगत में खडी बोली का पहला कवि होने का सम्मान प्राप्त है, किंतु हरिश्चंद्र का जन्म गुमानी के निधन (1846) के चार वर्ष बाद हुआ था। इस प्रकार गुमानी भारतेंदु हरिश्चंद्र के पहले के कवि हैं, जिन्होंने खड़ी बोली में रचनाएं लिखीं। अतः गुमानी कवि को ही खड़ी बोली का पहला कवि माना जाना चाहिए। गुमानी कवि खड़ी बोली के ही नहीं अपितु कुमाउनी और नेपाली भाषा के भी पहले कवि हैं। गुमानी पंत ने राम महिमा, गंगा शतक, रामनामपंचाशिका, जगन्नाथष्टक, कृष्णाष्टक, रामसहस्त्रगणदण्डक, चित्रपछावली, कालिकाष्टक, तत्वविछोतिनी-पंचपंचाशिका, रामविनय, नीतिशतक, शतोपदेश, ज्ञानभैषज्यमंजरी आदि अनेक उच्च कोटि की कृतियाँ लिखीं। इसके अलावा हिन्दी, कुमाउनी और नेपाली में कवि गुमानी ने समस्यापूर्ति, लोकोक्ति अवधूत वर्णनम, अंग्रेजी राज्य वर्णनम, राजांगरेजस्य राज्य वर्णनम, रामाष्टपदी आदि प्रसिद्ध कविताएं भी लिखीं।
गुमानी कवि का हिंदी, कुमाउनी, नेपाली और संस्कृत पर अधिकार था। इस बात को उद्घाटित करने वाली कविता की चार पंक्तियां देखिये, जिसमें प्रत्येक पंक्ति क्रमशः हिंदी, कुमाउनी, नेपाली और संस्कृत भाषा की है-
बाजे लोक त्रिलोक नाथ शिव की पूजा करें तो करें।
क्वे-क्वे भक्त गणेश का में बाजा हुनी तो हुनी।
राम्रो ध्यान भवानी का चरण मा गर्दन कसैले गरन्। धन्यात्मातुलधाम्नीह रमते रामे गुमानी कवि।
भाषा विज्ञानी सर जार्ज ग्रियर्सन ने लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया नामक अपनी प्रसिद्ध पुस्तक में गुमानी जी की दो रचनाओं गुमानीनीति और गुमानी काव्य-संग्रह का उल्लेख किया है। गुमानी नीति का संपादन देवीदत्त उप्रेती ने 1894 में किया था और गुमानी काव्य-संग्रह का संकलन और संपादन देवीदत्त शर्मा ने 1837 में किया था। गुमानी पंत पर अभी बहुत कम शोध कार्य हुआ है। अतः हम कह सकते हैं कि कुमाउनी, नेपाली और खड़ी बोली के इस प्रथम कवि की कृतियों का सम्यक मूल्यांकन और इन पर व्यापक शोध किया जाना अभी बाकी है।
गुमानी पंत की चयनित 5 कुमाउनी कविताएँ
1. गंगोली: सुकाल
केला निम्बू अखोड़ दाड़िम रिखू नारिंग आदो दही,
खासो भात जमालिको करकलो भूना गडेरी गबा,
च्यूड़ा सद्य उत्योल दूद बकलो घ्यू गाय को दाणेदार,
खानी सुन्दर मौणियां धपडुवा गङ्गावली रौणिया।
2. गंगोली: अकाल
आटा का अण चालिया खश खशा रोटा बड़ा बाकला,
फानो भट्ट गुरूस और गहत को डुबका बिना लूण का,
कालो शाक जिनो बिना भुटण को पिण्डालु का नौलको,
ज्यों त्यों पेट भरी अकाल काटनी गंगावली रौणियाँ।
3. काफल
खाणा लायक इन्द्र का हम छिंया भूलोक आई पड़ां,
पृथ्वी में लग यो पहाड़ हमरी थाती रची दैवले,
येसो चित्त विचारि काफल सबै राता भया क्रोधले,
कोई और बुड़ा खुड़ा शरमले नीला धुमेला भया।
4. हिसालु
हिंसालु की बाण बड़ी रिसालू,
जां जां जांछे उधेड़ खांछे,
ये बात को कोई गटो निमान,
दुध्याल की लात सौनी पड़छै।
5. सुनूँ बिरालि
ओ बिष्णुवा, मधुवा यथौत लछुवा कैंथें कभै जन्कया,
हमराछ पछिली बिना पुछड़ी की सूना विराली बुली,
द्वीभै का व्रतबन्ध ब्याहसूं हमले काटोछ जैको खुटो,
बांकी तीन खुटा बराबर करी तीनै भाई बांटिया,
सुतार गौं का घर का करेड़ा,तरूड़ की खाड़ पड़ी बिराली,
निकांशिल्या राज्य फिरंगि को छ,
कल्याण धन की डर के नहात।।