कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

मीनाक्षी खाती की ऐपण राखियाँ- बहना के प्यार में लोक-समाज और संस्कृति की मिठास

मीनाक्षी खाती की ऐपण राखियाँ– बहना के प्यार में लोक-समाज और संस्कृति की मिठास

         बहना ने भाई की कलाई पे प्यार बांधा है… और इस प्यार में अपने लोक, समाज और संस्कृति की मिठास घुली हुई हो तो और कहना ही क्या ! जी हाँ हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड की ऐपण गर्ल और मीनाकृति – द ऐपण प्रोजेक्ट की सीईओ मीनाक्षी खाती द्वारा निर्मित राखियों के विषय में। 

      मीनाक्षी खाती ने एक बार फिर ऐपण लोक कला के क्षेत्र में अभिनव प्रयोग करते हुए लाॅकडाउन में स्वयं के द्वारा बनाई गई ऐपण राखियाँ तैयार की हैं। इन राखियों में ऐपण कला को खूबसूरती से उकेरा गया है। इन राखियों में दादी, ददा, बैणी, भुला, भैजी, बौज्यू, ब्रो सहित विभिन्न नामों को अंकित किया गया है। ये राखियाँ दिखने में तो अत्यधिक आकर्षक लग ही रही हैं, साथ ही ये हमारी लोकसंस्कृति को संजोने का कार्य भी कर रही हैं। यही नहीं पर्यावरण की दृष्टि से भी ये राखियाँ लाभप्रद हैं, क्योंकि इनमें कहीं पर भी प्लास्टिक या अन्य सामग्री का उपयोग नहीं किया गया है। यानिकी इन राखियों में है बहना के असीम प्रेम के अलावा अपने लोक, समाज और संस्कृति की गहरी खुश्बू। 

       आपको भी आगामी 3 अगस्त को मनाये जाने वाले रक्षाबंधन पर्व हेतु ये राखियाँ अवश्य मंगानी चाहिए। रक्षाबंधन पर्व हेतु तैयार की गई इन विशेष राखियों के संदर्भ में मीनाक्षी का कहना है- “हमने एक महीने पहले से ही ऐपण राखी बनाने शुरू कर दी थी। लोगों को ये बेहद पसंद भी आ रही हैं। लोग हमारे मीनाकृति- द ऐपण प्रोजेक्ट के जरिये इसको मंगा रहें हैं। ऐपण राखी के जरिए आज महिलाओं को घर बैठे- बैठे रोजगार मिल रहा है। रामनगर, हल्द्वानी, नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ में भी कई महिलाओं और स्वयं सहायता समूहों के द्वारा भी ऐपण से बनी राखियाँ बनाई जा रही हैं। मुझे खुशी है कि अब ऐपण कला घर की देहली से देश के फलक तक अपनी पहचान बना चुकी है।” 

        यदि आप भी इस बार रक्षाबंधन का त्यौहार खास तरीके से मनाना चाहते हैं और हाथ से बनी ऐपण राखी को मंगाना चाहते हैं तो नीचे दिए ई-मेल पर संपर्क कर सकते हैं- 

  [email protected]

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