कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

प्रो० जगत सिंह बिष्ट: एक प्रतिभावान छात्र से वर्तमान कुलपति तक का सफर

प्रो० जगत सिंह बिष्ट:
एक प्रतिभावान छात्र से वर्तमान कुलपति तक का सफर

प्रो० बिष्ट अपने कार्यालय में।

है कठिन कुछ भी नहीं, जिनके है जी में यह ठना। 
कोस कितने ही चलें, पर वे कभी थकते नहीं॥

     साहित्यकार अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ की उपर्युक्त पक्तियाँ आकर्षक व्यक्तित्व एवं बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रो० जगत सिंह बिष्ट के जीवन पर सटीक बैठती हैं। दूरस्थ ग्रामीण इलाके से संबद्ध होने के बावजूद प्रो० जगत सिंह बिष्ट ने जीवन में संघर्ष करते हुए शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में जो मुकाम हासिल किया है, वह निश्चित रूप से अनुकरणीय और उल्लेखनीय है। 

सम्मेलन का उद्घाटन करते प्रो० बिष्ट

जीवन परिचय :

      प्रो. जगत सिंह बिष्ट का जन्म 30 अक्टूबर, 1962 ई. को पिथौरागढ़ जनपद में स्थित अस्कोट के पथरौली नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री कल्याण सिंह बिष्ट था, जो वैद्य के रूप में जाने जाते थे। घर की पारिवारिक स्थिति निम्नवर्गीय होने के बावजूद आपने निरंतर अध्ययन कार्य जारी रखा। आपने प्राइमरी से लेकर इंटर तक की शिक्षा गांव में ली। 7वीं कक्षा में अध्ययन के दौरान सिर से मां का साया उठ जाने व पारिवारिक निर्धनता होने के बावजूद उन्होंने अपार धैर्य का परिचय दिया। आपने रा०उ०मा०वि० सिंगाली, पिथौरागढ़ से हाईस्कूल एवं रा०इं०का० गर्खा, पिथौरागढ़ से इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की। 

युवावस्था में प्रो० बिष्ट (मध्य में)।

    आगे की शिक्षा के लिए पिता ने आपको पिथौरागढ़ भेजा। आपने सन् 1984 में एम० ए० (हिन्दी) की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। हाईस्कूल से एम०ए० तक की समस्त परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करना निश्चित रूप से आपकी प्रतिभा को उजागर करता है। एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात बिष्ट जी ने सन् 1985 में राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, पिथौरागढ़ में अध्यापन कार्य प्रारंभ किया। आपने सन् 1988 ई. में कुमाऊँ विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। इस दौरान आपने नारायणनगर, मानिला, स्याल्दे आदि महाविद्यालयों में भी शिक्षण कार्य किया। आपने 25 जून, 1991 से कुमाऊँ विश्वविद्यालय के सोबन सिंह जीना परिसर, अल्मोड़ा में अध्यापन कार्य शुरू किया। वर्तमान में आपको हाल ही में अल्मोड़ा विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया है।

छोटे बेटे दिग्विजय का जन्मदिन मनाते प्रो० बिष्ट।


  • नाम- प्रो० जगत सिंह बिष्ट
  • माता-पिता का नाम- श्रीमती हरलीदेवी व श्री कल्याण सिंह बिष्ट
  • जन्म स्थान– पथरौली (अस्कोट), पिथौरागढ़
  • जन्मतिथि– 30-10-1962
  • शैक्षिक योग्यता-
    1. हाईस्कूल, 1978, प्रथम श्रेणी, यू०पी० बोर्ड, इलाहाबाद
    2. इण्टरमीडिएट, 1980, प्रथम श्रेणी, यू0पी0 बोर्ड, इलाहाबाद
    3. बी0ए0, 1982, प्रथम श्रेणी, कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल
    4. एम0ए0 (हिंदी), 1984, प्रथम श्रेणी, कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल
    5. पी-एच0डी0 (हिंदी), 1988, कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल। 

प्रशासनिक कार्य :

       प्रो० बिष्ट ने अल्मोड़ा को ही अपनी कर्मस्थली के रूप में चुना और यहीं अपना निवास-स्थान बनाया। वर्तमान में आप अपनी धर्मपत्नी श्रीमती दीपा बिष्ट और दो पुत्रों तरूण बिष्ट व दिग्विजय बिष्ट सहित अल्मोड़ा में निवासरत हैं। आपने प्रभारी प्रोफेसर पुस्तकालयाध्यक्ष, कुलानुशासक, सहायक अधिष्ठाता छात्र कल्याण, कार्यक्रम अधिकारी (रासेयो), निदेशक हरेला पीठ, निदेशक महादेवी वर्मा सृजनपीठ, उड़नदस्ते का सदस्य एवं प्रभारी, प्रवेश समिति का सदस्य एवं संयोजक, हिंदी विभागाध्यक्ष आदि पदों पर कार्य कर सोबन सिंह जीना परिसर, अल्मोड़ा को अपनी सेवाएँ दी हैं। वर्तमान में आप विभागाध्यक्ष, सोबन सिंह जीना परिसर, अल्मोड़ा, शोध व प्रसार निदेशक व कुलपति, सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा के पदों पर सेवाएं देकर हमें गौरवान्वित कर रहे हैं। 

अपने पैतृक गाँव में प्रो० बिष्ट।

शोध कार्य :

      प्रो० जगत सिंह बिष्ट के निर्देशन में दो दर्जन से अधिक छात्र-छात्राओं को पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त हो चुकी है और तीन दर्जन से विद्यार्थी लघु शोध कर चुके हैं। कई विद्यार्थी शोधरत हैं। उनके सैकड़ों शोध आलेख व रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्होंने अनेक सम्मेलनों व कार्यशालाओं में प्रतिभागिता की है। 

पुस्तक का लोकार्पण करते प्रो० बिष्ट।

साहित्य सेवा :

      प्रो. जगत सिंह बिष्ट को विद्यार्थी जीवन से ही साहित्य के प्रति रूचि थी। आपके विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में अनेक कविताएँ, आलेख एवं शोध-आलेख प्रकाशित होते रहते हैं। आप साहित्य में विशेष रूप से आलोचक के रूप में जाने जाते हैं। आपके द्वारा लिखित पुस्तकों का विवरण नीचे दिया जा रहा है-

(क) मौलिक पुस्तकें (रचनात्मक शोध एवं आलोचनात्मक)-

1. सन्नाटे का वक्तव्य (कविता संग्रह); आधार शिला प्रकाशन, हल्द्वानी (1998)

2. सूखे पत्रों से (कविता संग्रह); मनीष प्रकाशन, अल्मोड़ा (2000)

3. हिंदी स्मारक साहित्य, तारामंडल प्रकाशन, सासनीगेट, अलीगढ़ (2000)

4. मैथिलीशरण गुप्त के काव्य में अलंकार विधान; ग्रंथायन, सर्वोदय नगर, सासनी गेट, अलीगढ़ (1999)

5. काव्यशास्त्र के सिद्धांत; तक्षशिला प्रकाशन, 23 / 4761, अंसारीरोड, दरियागंज, नई दिल्ली (2002)

6. मैथिलीशरण गुप्त के काव्य में गाँधी-दर्शन: प्रकाश प्रकाशन, अल्मोड़ा (2005)

7. साहित्य सृजन के कुछ संदर्भ; अल्मोड़ा बुक डिपो, अल्मोड़ा (2006) पुनर्प्रकाशन अनामिका प्रकाशन, दिल्ली, 2017

8. होने की प्रतीति (कविता संग्रह); अल्मोड़ा बुक डिपो, अल्मोड़ा (2006)

9. कुमाउनी की उपबोली अस्कोटी का व्याकरण प्रकाश प्रकाशन, अल्मोड़ा (2007) पुनर्प्रकाशन अंकित प्रकाशन, हल्द्वानी (2012)

10. साहित्य प्रसंगः विचार और विश्लेषण, अंकित प्रकाशन, हल्द्वानी (2007)

11. साहित्य, लोक साहित्य और भाषा पर्व, अंकित प्रकाशन, हल्द्वानी (2017)

(ख) संपादित पुस्तकें ( पाठ्य पुस्तकें/ सहसंपादित)-

1. निबंध सप्तक; मॉडर्न बुक स्टोर दी माल, नैनीताल (1996)

2. गद्य संचयन; श्री अल्मोड़ा बुक डिपो, अल्मोड़ा (1996)

3. हिंदी स्मारक साहित्य संग्रह; तारा मंडल प्रकाशन, सासनीगेट, अलीगढ़ (1999)

4. मानक हिंदी शब्दावली प्रकाश प्रकाशन, अल्मोड़ा (2005)

5. भाषा संप्रेषण : विविध आयाम, प्रकाश प्रकाशन, अल्मोड़ा (2006)

6. उत्तराखण्ड के रचनाकार और उनका साहित्य, अंकित प्रकाशन, हल्द्वानी (2006)

7. उमाव ( कुमाउनी कविता संग्रह), प्रकाश प्रकाशन, अल्मोड़ा (2008)

8. पाँच कहानियाँ, प्रकाश पब्लिकेशन, हल्द्वानी (2012)

9. उत्तराखण्ड का हिंदी साहित्य; अंकित प्रकाशन, हल्द्वानी (2016)

सम्मेलन में मंचासीन प्रो० बिष्ट।

     प्रो० जगत सिंह बिष्ट का जीवन युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक है। अनेक प्रशासनिक पदों पर रहते हुए भी उन्होंने शोध कार्य को पर्याप्त समय दिया है। उत्तराखंड के कथाकारों पर शोध कार्य करना उनकी प्राथमिकता में रहा है। उनके निर्देशन में शोधार्थियों ने शैलेश मटियानी, हिमांशु जोशी, पानू खोलिया, मनोहर श्याम जोशी, मृणाल पांडे, रमेश चन्द्र शाह, लक्ष्मण सिंह बिष्ट ‘बटरोही’, विद्यासागर नौटियाल आदि उत्तराखण्ड के कथाकारों पर शोध कार्य किये हैं।

    प्रो० बिष्ट ने अपने पिता की याद में एक पुरस्कार की स्थापना भी की है। ‘वैद्य कल्याण सिंह बिष्ट स्मृति कुमाउनी संस्कृति सेवी सम्मान’ नाम के इस पुरस्कार से प्रति वर्ष लोक कलाकारों को सम्मानित किया जाता है। एक कवि के रूप में प्रो० बिष्ट अपनी कविताओं के माध्यम से आधुनिक समाज के यथार्थ को बयां करते हैं, जबकि एक आलोचक के रूप में विषय वस्तु का बेबाक विवेचन-विश्लेषण एवं गहन दृष्टि उनकी आलोचना की विशेषता है।

अपने साथी प्राध्यापकों के साथ प्रो० बिष्ट।

       प्रो० बिष्ट आज की आपाधापी वाले जीवन के विषय में कहते हैं- “जीवन नहीं रहा अब क्योंकि यह यंत्र है- चलना ही चलना है।” प्रो० बिष्ट साहित्य को सार्वभौमिक मानते हैं। शिक्षा के विषय में उनका मानना है कि शिक्षा को रोजगारपरक होने के साथ-साथ नैतिक एवं मानवीय मूल्यों से संपन्न होना चाहिए। पुरस्कारों की होड़ से दूर रहने वाले ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ और बेहद सरल एवं सहृदय प्रो० बिष्ट के शैक्षिक एवं साहित्यिक योगदान का सम्यक मूल्यांकन होना अभी बाकी है। 

    प्रो० बिष्ट को सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा का कुलपति बनाये जाने पर हार्दिक बधाई।🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷

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