कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

चारूचंद्र पांडे का कुमाउनी कविता संग्रह: अङवाल

कुमाउनी कविता संग्रह: अङवाल
Kumauni Poetry Collection: anwal

‘अङवाल’ साहित्य अकादमी भाषा पुरस्कार से पुरस्कृत कवि चारू चंद्र पांडे का कविता संग्रह है। आइये जानते हैं पुस्तक और रचनाकार के विषय में-

कविता संग्रह के विषय में-

अङवाल

     ‘अङवाल’ कुमाउनी कवि चारूचंद्र पांडे का कविता संग्रह है। इस संग्रह के पहले संस्करण का प्रकाशन 1986 में हुड़का प्रकाशन, नैनीताल से हुआ। इस किताब की भूमिका स्वयं पांडे जी ने ने लिखी है, जिसमें उन्होंने कुमाउनी भाषा पर प्रकाश डाला है। ‘अङवाल’ में कुल 63 कविताएँ संगृहीत हैं। इन 63 कविताओं को रचनाकार ने कुल 5 भागों में विभाजित किया है। पहले भाग ‘पछिल बै सूरज अघिल अगिनि छौ’ में कुल 11 कविताएँ, दूसरे भाग ‘म्यर सिराण ह्यूं हिमांचल’ में कुल 14 कविताएँ, तीसरे भाग ‘कत्थ हुड़ुक कत्थ गैंण’ में कुल 8 कविताएँ, चौथे भाग बुरूंशी का फूलों को’ में कुल 20 कविताएँ और पांचवे भाग ‘काथ कौ आमा’ में कुल 10 कविताएँ संगृहीत हैं। पांडे जी ने अपनी कविताओं में पहाड़ की लोक संस्कृति व सामाजिक जीवन का सजीव चित्रण किया है। पहाड़ के देवी-देवताओं, त्योहारों, पर्वों, प्रकृति, देश प्रेम, सामाजिक परिवेश आदि को इन्होंने अपनी कविताओं का विषय बनाया है। इनकी कविताओं में ठेठ कुमाउनी भाषा का प्रयोग, अलंकारिकता, छंदबद्धता व बिंबों का प्रयोग दर्शनीय है। 

        इस संग्रह से ‘बसंत’ कविता की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं-
भरी-भरी आंचुरी लै फूल उचूंल। 
ऋतु आली हौसिया रङ बरसूंल।। 

पिङलो बसंत आयो दिया करो बाती। 
पिठ्या ले आंखत धरौ फूल टिपौ पाती। 
खिलनैलै लुदी गईं यो आलूबुखारू। 
छीटै को पिछौड़ी ढकी ठाड़ छिना आरू। 
तिनाड़ा हरिया जौं का ख्वारन चढ़ूंल। 
ऋतु आली हौसिया रङ बरसूंल।। 

ग्यूं- जौनू का बालाड़न दूद भरी आयो। 
निमुंवाका फूलन लै चंवर डुलायो। 
फल का भार लै डाली जली झुकि जाली। 
ठुमुक नाचलो दैणा कोयल बुलाली। 
वीका मिठा बोल में भाग लगूंल।
ऋतु आली हौसिया रङ बरसूंल।। (पृष्ठ-81) 


किताब का नाम- ‘अङवाल’
विधा- कविता
रचनाकार- चारूचंद्र पांडे
प्रकाशक- हुड़का प्रकाशन, नैनीताल
प्रकाशन वर्ष- 1986


रचनाकार के विषय में-

चारूचंद्र पांडे 

     कुमाउनी कवि चारूचंद्र पांडे का जन्म 23 मार्च, 1923 को अल्मोड़ा जनपद के कसून गाँव में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री नीलाधर पांडे व माताजी का नाम श्रीमती पार्वती देवी था। आपने इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद ही अध्यापन कार्य शुरू कर दिया था। आपने 1943 में आगरा विश्वविद्यालय से बीए करने के बाद बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से 1947 में बी०टी० की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् 1948 में आपका विवाह कु० चंद्रा के साथ हुआ। आपने अध्यापन करते हुए ही 1962 में आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए. की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली। पांडे जी ने वर्ष 1982 तक उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के विद्यालयों में सहायक अध्यापक, प्रवक्ता, प्रधानाचार्य आदि पदों पर कार्य किया। 

      आपने एक कुमाउनी कविता संग्रह ‘अङवाल’ ( 1986) की रचना के साथ-साथ गुमानी पंत और गौरी दत्त पांडे ‘गौर्दा’ की कुमाउनी कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद भी किया। इनके गुमानी पंत की कविताओं का अनुवाद हिंदी में ‘कहै गुमानी’ और अंग्रेजी में ‘Says Gumani’ नाम से प्रकाशित हुआ। इसी तरह इनके गौर्दा की कुमाउनी कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद ‘Echoes from the Hills’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ। ‘गौर्दा का काव्य दर्शन’ व ‘छोड़ो गुलामी खिताब’ पुस्तकें भी इन्होंने लिखी हैं। पांडे जी ने कुमाउनी में कविताओं के साथ-साथ कुछ कहानियाँ व लेख भी लिखे हैं। 

        पांडे जी साहित्य रचना के साथ-साथ संगीत, नाटक व रंगमंच से भी जुड़े रहे। साहित्यिक, सांस्कृतिक व शैक्षिक क्षेत्र में योगदान के लिए आपको राष्ट्रपति पुरस्कार (1968), उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान पुरस्कार (1979-80), उमेश डोबाल समृति सम्मान (2000), कुमाउनी साहित्य सेवी सम्मान (2009), साहित्य अकादमी भाषा पुरस्कार (2015) आदि सम्मानों से अलंकृत किया गया। वर्ष 2017 में चारू चंद्र पांडे इस लौकिक संसार को छोड़कर चल बसे। 

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