कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

कुमाउनी कहानी संग्रह: भल करौ च्यला त्वील (Kumauni story Collection: Bhal karau chyala twil)

कुमाउनी कहानी संग्रह: भल करौ च्यला त्वील
Kumauni story Collection: Bhal karau chyala twil

      साथियों, क्या आप उस शख्सियत का नाम जानते हैं, जिसका कुमाउनी में बच्चों के लिए साहित्य लिखने में विशेष योगदान है ? आइये आज हम चर्चा करते हैं कुमाउनी के इसी कथाकार के कुमाउनी कहानी संग्रह ‘भल करौ च्यला त्वील’ के विषय में। इस कहानी संग्रह के लेखक हैं- साहित्यकार पूरनचंद्र काण्ड पाल। आइये जानते हैं पुस्तक और लेखक के विषय में। 

कहानी संग्रह के विषय में-

भल करौ च्यला त्वील
(कुमाउनी कहानी संग्रह)

        ‘भल करौ च्यला त्वील’ कुमाउनी कहानी संग्रह के लेखक पूरनचंद्र काण्डपाल हैं। इस किताब के प्रथम संस्करण का प्रकाशन जनवरी, 2009 में मीनाल एजुकेशन बुक्स, दरियागंज, दिल्ली से हुआ है। इस कहानी संग्रह में इजैकि याद, बाकरै बइ, मतलबी भै, पंचौंक फैसाल, मधियक ब्या, मानि गैछी उ, ध्वकैल ली जमीन, पिरमू मास्टर, दास डंगरी जागर मसाण, बैसी म ले बद्यल, नना कि कुड़बुद्द, संगतक असर, सासु है ठुलि नंद, कढै पोछियाक ज्यून, पागलपनौक इलाज, बार दिनक क्वड़, बेमान निकलौ उ आदिम, चखा मंतरी द्यो धैं, दिखौवेकि मुंडन, कुनई न मिली, हरैंगी उतरैणीक काव कुल 21 कहानियाँ संगृहीत हैं। 

      कहानीकार पूरन चंद्र कांडपाल की कहानियों में उनके स्वभाव के अनुरूप कुमाऊँ के समाज में फैले अंधविश्वासों व कुरूतियों के विरूद्ध आक्रोश व्यक्त हुआ है। ‘संगतक असर’ कहानी से एक उदाहरण दिया जा रहा है-

“इंसानैकि जिंदगी में संगतक भौत ठुल असर पड़ूं। हमर समाज में इस्कूली ननाक बीड़ी-सिगरेट पीणक मुख्य कारण छ उनरा घराक लोग ले पीनी। क्वै ले घर आयो वीक बीड़ी, सिगरट या तमाकू ल सत्कार हूँ।”

किताब का नाम- ‘भल करौ च्यला त्वील’
विधा- कहानी
लेखक- पूरन चंद्र कांडपाल
प्रकाशक- मीनाल एजुकेशन बुक्स, दिल्ली
प्रकाशन वर्ष- 2009

लेखक के विषय में-

साहित्यकार पूरन चंद्र कांडपाल

       वरिष्ठ साहित्यकार श्री पूरन चंद्र कांडपाल का जन्म 28 मार्च, 1948 को रानीखेत के खग्यार, पिलखोली नामक गाँव में हुआ। आपकी माताजी का नाम श्रीमती हंसी कांडपाल व पिताजी का नाम श्री बी.बी.कांडपाल था। आपने एम.ए. की परीक्षा राजनीतिशास्त्र विषय से उत्तीर्ण की और आजीविका हेतु स्वास्थ्य शिक्षक के रूप में कार्य किया। 

        पूरन चंद्र कांडपाल जी दिल्ली में रहते हुए हिंदी के साथ-साथ कुमाउनी भाषा के विकास में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। हिंदी और कुमाऊनी में इनके द्वारा लगभग 30 किताबें लिखी गई हैं। 

       इनमें से हिंदी में 17 और कुमाउनी में 13 किताबें हैं। हिंदी में बचपन की बुनियाद, कारगिल के रणबांकुरे, स्मृति लहर, ये निराले, जागर, शराब धूम्रपान, इंडिया गेट का शहीद और कुमाउनी में महामनखी, सांचि, छिलुक, बटौव, मुकस्यार, उज्याव, लगुल, हमरि भाषा हमरि पछ्याण, भल करौ च्यला त्वील किताबें विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। 

      कांडपाल जी को उनकी साहित्य सेवाओं हेतु ‘आचार्य चतुर सेन सम्मान’, राष्ट्रीय सहारा का ‘प्रेरक व्यक्तित्व सम्मान’, साथी एवं उपवन पत्रिका से ‘कृति सम्मान’, हिंदी अकादमी दिल्ली सरकार का ‘बाल किशोर साहित्य सम्मान’ 2009, सर्व भाषा ट्रस्ट नई दिल्ली- ‘गिरदा साहित्य सम्मान’ 2018, गंगा मेहता स्मृति सम्मान, पहरू अल्मोड़ा 2013, ‘कलश साहित्य सम्मान’ 2014 नई दिल्ली, बहादुर सिंह बनोला स्मृति सम्मान पहरू अल्मोड़ा 2014, महाकवि ‘कन्हैयालाल डंडरियाल साहित्य सम्मान’ 2016 लोकभाषा साहित्य मंच, दिल्ली, हिमालय गौरव सम्मान 2018 आदि सम्मानों से नवाजा गया है। 

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