कठिन नहीं कोई भी काम, हर काम संभव है। मुश्किल लगे जो मुकाम, वह मुकाम संभव है - डॉ. पवनेश।

उदय किरौला का बाल कहानी संग्रह: जागरै दिनै बात

उदय किरौला और बाल कहानी संग्रह ‘जागरै दिनै बात’

साथियों, आज हम चर्चा करते हैं कुमाउनी कुमाउनी कहानी संग्रह ‘जागरै दिनै बात’ के विषय में। इस कहानी संग्रह के लेखक हैं, संपादक व साहित्यकार उदय किरौला। आइये जानते हैं पुस्तक और लेखक के विषय में-

कहानी संग्रह के विषय में-

जागरै दिनै बात

       उदय किरौला बाल जीवन व बाल साहित्य दोनों के प्रति समर्पित हैं। उनका कुमाउनी बाल कहानी संग्रह ‘जागरै दिनै बात’ वर्ष 2012 में उनके संस्थान बाल साहित्य शोध एवं संवर्धन समिति, द्वाराहाट, अल्मोड़ा से प्रकाशित हुआ है। इस कहानी- संग्रह में कुल 13 बाल कहानियां संग्रहीत हैं। ये कहानियां हैं, पुछ्यार, मडुवौ रवट, आमौ डवौ भूत, जागरै दिनै बात, पुंतुरी काकि, रूजगार, फुल खाज, सात पुस्तक पैलियै बात, द्यप्तल करि दी चिणक्यो, छ्वर मुया थान, घुङरू बजौणी भूत, क्ये खै लियो, ब्यौल। कहानी लिखते समय किरौला जी ने बाल मनोविज्ञान का पूरा ध्यान रखा है।

     ये कहानियाँ बच्चों में वैज्ञानिक चेतना का विकास करने के लिए लिखी गई हैं। इसीलिए संग्रह की अधिकांश कहानियों में अंधविश्वास पर प्रहार किया गया है। शीर्षक कहानी ‘जागरै दिनै बात’ भी अंधविश्वास के प्रति बच्चों में जागरूकता पैदा करती है। कहानी की चरित्र पनुली जागर द्वारा नहीं बल्कि डाक्टर के इलाज द्वारा ही स्वस्थ होती है- 

    दिल्ली में डाक्टर सैप नाराज है गाय। कूण लाग बखत पर ल्यै गैछा, ईलाज में देर हुंछी तो ये चेली मरि जांछी। हिरदाल घर पनै जौ जागरै बात डाक्टर सैप कैं बतै दी। ( पृ०19)


किताब का नाम- जागरै दिनै बात
विधा- कहानी
लेखक- उदय किरौला
प्रकाशक- बाल साहित्य शोध एवं संवर्धन समिति, द्वाराहाट, अल्मोड़ा
प्रकाशन वर्ष- 2012


कहानीकार के विषय में-

उदय किरौला

      उदय किरौला का जन्म 12 मार्च, 1960 को द्वाराहाट तहसील (अल्मोड़ा) के कलौटिया गाँव में हुआ। आपकी माताजी का नाम श्रीमती मालती देवी और पिताजी का नाम श्री आन सिंह किरौला है। किरौला जी ने 1978 में इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की और तत्पश्चात् पालटेक्निक किया। वर्ष 1987 में आप ताकुला पालटेक्निक में शिक्षक के रूप में नियुक्त हुए। आपकी सहधर्मिणी श्रीमती नंदी किरौला सहायक अध्यापिका हैं। परिवार में आपके एक पुत्र संतोष किरौला व एक पुत्री गरिमा किरौला हैं। दोनों का विवाह हो चुका है। 

      किरौला जी ने एम.ए. व एम. काम. की परीक्षाएँ भी उत्तीर्ण की हैं। बच्चों के साथ कार्य करने की उत्कट अभिलाषा के कारण आपने वर्ष 2004 से बालप्रहरी और ज्ञान विज्ञान बुलेटिन पत्रिकाओं का प्रकाशन कार्य किया। ‘बाल प्रहरी’ बाल साहित्य की त्रैमासिक पत्रिका है, जिसमें न सिर्फ देशभर के बाल साहित्यकारों की रचनाएँ प्रकाशित होती हैं, बल्कि इस पत्रिका में 10 पृष्ठों में देश भर के बच्चों की रचनाएँ भी छपती हैं। ‘ज्ञान विज्ञान बुलेटिन’ वैज्ञानिक चेतना का विकास करने वाली पत्रिका है। 

     किरौला जी वर्ष 2006 से देशभर के बाल साहित्यकारों के मध्य विचार विमर्श करने व उन्हें पुरस्कृत करने के उद्देश्य से एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का भी आयोजन प्रतिवर्ष करते हैं। उत्तराखंड के अलावा लखनऊ, मुरादाबाद, देवरिया, भागलपुर, उदयपुर आदि स्थानों में यह गोष्ठी आयोजित की जा चुकी है। 

       इन सब कार्यों के अलावा किरौला जी लेखन में भी निरंतर सक्रिय रहते हैं। वर्ष 1978-88 में इनकी पहली पुस्तक ‘ढोंगी साधु’ शीर्षक से प्रकाशित हुई। इसके बाद उत्तराखंड: एक अध्ययन, जानिए उत्तराखंड को, मद्यपान दुष्परिणाम, टंकण व्यावहारिक, टंकण प्रायोगिक हिंदी, टंकण प्रायोगिक अंग्रेजी, मीठे जामुन, जागरै दिनै बात आदि पुस्तकें आपकी प्रकाशित हो चुकी हैं। वर्ष 2012 में प्रकाशित ‘जागरै दिनै बात’ संभवतया कुमाउनी का पहला बाल कहानी संग्रह है। 

       उदय किरौला जी बच्चों के बीच खासे लोकप्रिय हैं। बाल साहित्य पर कार्य करने हेतु आपको दर्जन भर संस्थाओं ने सम्मानित भी किया है। वर्ष 2010 में ‘बालप्रहरी’ को पूरे देश में सर्वश्रेष्ठ बाल पत्रिका का पुरस्कार भी मिल चुका है। इन सबके बावजूद किरौला जी द्वारा किये जा रहे कार्यों का सम्यक मूल्यांकन होना अभी बाकी है। 

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