‘मेरे गाँव के फौजी‘ पुस्तक का हुआ लोकार्पण और सम्मानित हुई विभूतियाँ अल्मोड़ा, रा०इ० कॉ० नाई में आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत समारोह का आयोजन किया गया। इस समारोह में धुराफाट क्षेत्र के फौजियों पर केंद्रित पुस्तक ‘मेरे गाँव के फौजी’ का प्रधानाचार्य डॉ० पवनेश ठकुराठी, मुख्य अतिथि नायब सूबेदार श्री मोहन सिंह भंडारी,
यात्रावृतांत- गाँव, मंदिर, कंकाल और वह जंगल के बीच का झरना कल मुझे अपने शिक्षक साथी गणेश चंद्र शर्मा के साथ अल्मोड़ा के समीपवर्ती ग्राम बल्टा के भ्रमण का सौभाग्य प्राप्त हुआ। बल्टा गाँव के भ्रमण का उद्देश्य यह था कि यह अल्मोड़ा का समीपवर्ती सब्जी उत्पादक गाँव है। यहाँ के
एक फौजी की प्रेम कहानी मुझे भरोसा है अपने ईष्ट देव पर। वो एक दिन जरूर वापस आयेंगे। कुमाऊँ रेजिमेंट में भर्ती हुए अभी उनको पूरे ढाई साल भी नहीं हुए हैं और आर्मी वाले कहते हैं कि गायब हो गये ! अरे भाई, ऐसे ही गायब हो जाता कोई सेना से। राजू की ड्यूटी
खामोशियाँ कुछ कह रही हैं “देखो बेटा ! कितनी खामोशी है यहाँ ! तुम्हें लगता नहीं ये खामोशियाँ कुछ कह रही हैं।” देबू काका ने कहा। “हाँ, काका ! मैंने सपने में भी नहीं नहीं सोचा था कि पांच सालों में गाँव इतना बदल जायेगा। चारों ओर सन्नाटा ही सन्नाटा पसरा हुआ है।”
प्रेम की होली होली पर गांव- बाजार का माहौल गरमाया हुआ था। जहाँ- तहाँ रंग से पुते होल्यार ही होल्यार नजर आ रहे थे। होली है- होली है की ध्वनि से वातावरण गुंजायमान हो रहा था। राजेश, मदन और राहुल भी अपनी- अपनी पिचकारी से लोगों को भिगा रहे थे। अचानक उन्होंने देखा कि उनका
एक असफल प्रेमी की प्रेमकथा आज मैं पूरे बत्तीस साल का हो गया हूँ। साथ-ही- साथ एक अकलमंद और सयाना लौंडा भी। इसलिए आज मैं पूरे होशो-हवास में यह निर्णय ले रहा हूँ कि आज के बाद मैं किसी कुंवारी लड़की की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखूंगा और ना ही किसी कन्या के सामने प्रणय
नीली साड़ी वाला चांद जब मैं छोटा बच्चा था तो रात को मां से चांद दिखाने की जिद किया करता था। माँ मना करती तो मैं रोने लगता था। मजबूर होकर माँ को चांद दिखाने मुझे छत पर ले जाना पड़ता था। तब माँ मेरा मुंह चांद की ओर करके गुनगुनाती थी- “चंदा मामा आ