सोलह कलाओं वाला चांद उसने नजर झुकाई पलकें उठाई निहारती रही छत से। कुछ देर बाद भंवरे-सी गुनगुनाहट हवा में बिखर गई। वह मुस्कुराई आगे बढ़ी कहने लगी- “बाय।” उस हाथ से जिसमें क्षमता थी कई लोगों का भाग्य बदलने की। फिर उसी हाथ से संभाला उसने दुपट्टा और मुस्कुराती हुई उतर गई
उसके जाने से बारिश की लाखों बूदें उतना नहीं भिगा पाई मुझे जितना उसके नयनों से गिरती दो बूदों ने भिगाया मुझे दुखों की मार उतना नहीं रूलाती मुझे जितना उसकी यादों ने रूलाया मुझे वो चली गई मुझे छोड़कर उसी तरह जिस तरह चला जाता है कोई अपना पुस्तैनी मकान छोड़कर
भरी दुपहरी में मैंने इक चांद देखा अंबर देखा, बादल देखे तारों का उन्माद देखा भरी दुपहरी में मैंने इक चांद देखा। पानी के बुलबुले-सी उसकी हंसी धीरे से मेरे कानों में धंसी कुछ ही पलों बाद मैंने अरमानों का झुंड टहलता आबाद देखा। भरी दुपहरी में मैंने इक चांद देखा। सिक्के
मुझे वह चुलबुली लड़की याद आती है मुझे स्कूल के दिनों की चौथे नंबर की बैंच पर बैठने वाली वह चुलबुली लड़की याद आती है। उसका हंसना उसका रोना पन्ने पलटते हुए उसका मुड़-मुड़ पीछे देखना उसका हर अंदाज उसकी हर बात याद आती है मुझे वह चुलबुली लड़की याद आती है।
तेरे प्रेम में त्रिज्या से व्यास बन गई हूँ हरी-भरी धरती थी अब तो नीला आकाश बन गई हूँ तेरे प्रेम में ओ पगले ! त्रिज्या से मैं व्यास बन गई हूँ। तू क्या जाने मेरे जीवनवृत्त की एकमात्र परिधि तू ही है अब बावली होकर तेरे दिल की आनी-जानी सांस बन गई