शेर सिंह मेहता ‘कुमाउनी’ की अनुवादित पुस्तक: श्रीमद्भगवद्गीता (Translate book: Shrimadbhagwadgeeta)
अनुवादित पुस्तक: श्रीमद्भगवद्गीता
Translate book:Shrimadbhagwadgeeta
साथियों, आज हम चर्चा करते हैं कुमाउनी के महत्वपूर्ण लेखक श्री शेर सिंह मेहता जी की अनुवादित पुस्तक ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ के विषय में।
पुस्तक के विषय में-
श्रीमद्भगवद्गीता
‘श्रीमद्भगवद्गीता’ पुस्तक महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित संस्कृत पुस्तक श्रीमद्भगवद्गीता का कुमाउनी गद्यात्मक अनुवाद है। इसके अनुवादक शेर सिंह मेहता ‘कुुुमाउनी’ हैं। इस पुस्तक का प्रकाशन वर्ष 2012 में श्री ओम प्रकाश मेहता, टैगोर कालोनी, हल्द्वानी द्वारा किया गया। इस पुस्तक में गीता के समस्त 18 अध्यायों का कुमाउनी गद्य में अनुवाद किया गया है। चतुर्थ अध्याय के 7वें व 8 वेें श्लोक दर्शनीय हैं-
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 7)
हे भारत अर्जुन जब जब धर्मक नाश और अधर्म बढ़ण फैजा तब-तब मैं आपण स्वरूप रचौंछौं और साकार रूप हैबेर लोगनाक सामणि औनै रौं।
परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे।।
(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 8)
शुभ कर्म करणीं साधु पुरुषनोंक ( भयालि ) उद्धार और पापिनौक नाश करणी हुणि और धर्म कैं भलिकै चलौण ( स्थापना) क लिजी मैं युग- युगन में प्रकट हुनै रौछौं। म्यौर अवतार हुनै रौछ। ( पृष्ठ-40)
किताब का नाम- ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ (कुमाउनी)
विधा- अनुवाद
लेखक- शेरसिंह मेहता
प्रकाशक- श्री ओम प्रकाश मेहता, टैगोर कालोनी, हल्द्वानी
प्रकाशन वर्ष- 2012
अनुवादक के विषय में-
शेर सिंह मेहता ‘कुमाउनी’
शेरसिंह मेहता का जन्म 18 मार्च, 1928 में अल्मोड़ा के मैचोड़ गांव में हुआ। उनके पिता धनसिंह मेहता साधारण व्यवसायी थे। उनकी माता का नाम श्रीमती तिलोगा देवी था। परिवार में उनके अलावा दो बड़े भाई और एक सबसे छोटी बहन थी। बचपन में उनकी माता का देहावसान हो गया था जिस कारण वे मातृ स्नेह से वंचित रहे। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा पैतृक गों मैचोड़ (अल्मोडा़) में रहकर पूरी की। इसके बाद उनकी शिक्षा टाउन स्कूल अल्मोड़ा और अल्मोड़ा माॅडल स्कूल में हुई । माॅडल इस्कूल से मिडिल तक की शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्होंने पहाड़ से विदा लेकर देश के अलग-अलग भागों में नौकरी की। उन्होंने दिल्ली पाॅलीटेक्निक से मैकेनिकल इलैक्ट्रिकल कोर्स की परीक्षा पास की और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजी सेना की कर्मशाला में शामिल हो गये। सन् 1947 में भारत की आजादी के साथ उन्होंने भी नौकरी छोड़ दी और बिहार सरकार के अधीन कई पदों में काम करके देश का नाम रोशन किया। उनके पास दस साल तक रिफ्यूजियों (शरणार्थियों) को ट्रेनिंग देने का अनुभव था। बिहार सरकार के अधीन नौकरी करते समय उन्होंने ग्रामीणों को कृषि संबंधी तमाम विषयों पर ट्रेनिंग दी। लगभग 29 साल तल गांवों में सेवा देने और इंजीनियरिंग रिसर्च वर्क करने के बाद वे रिटायर होकर अपने घर आ गये। 85 साल की उम्र में 28 नवम्बर, 2013 में उनका निधन हुआ।
शेरसिंह मेहता के साहित्यिक जीवन की शुरूआत साठ के दशक से शुरू हुई। शुरूवाती दौर में उन्होंने आकाशवाणी लखनऊ के लिए लिखना शुरू किया और उसके बाद धीरे-धीरे उनकी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। उन्होंने कुमाउनी और हिंदी दोनों भाषाओं में रचना की। उनर द्वारा लिखी किताबों को हम दो भागों में विभाजित कर सकते हैं –
मौलिक किताबें-
1. हिंदी किताबें-
1. मेरा परिचय,
2. यंत्र परिचय-जानकारीपरक किताब।
3. महत्वपूर्ण संकल्प-लेख और विचार संग्रह।
4. क्रांतिः पगला कहीं का-उपन्यास।
5. महाभारतः कीर्तन, कथा, कवित्त-धार्मिक किताब।
6. पुरूषार्थीः भाग एक-उपन्यास।
7. पुरूषार्थीः भाग दो-उपन्यास।
8. तड़पन-कविता संग्रह।
2. कुमाउनी किताबें-
1. आत्मानुभूति-उपन्यास।
2. गजराज चैबटी-उपन्यास।
3. मिस है गे सैप-उपन्यास।
4. ठुल मुनीम ज्यू-कथा संग्रह।
5. ग्वल ज्यु जागर-जागर पुस्तक।
6. कुमाउनी गद्य-पद्य संग्रह-कथोपकथन और कविता।
3. अनूदित-
1. कुमाऊँ क नरभक्षी-जिम कार्बेट की ‘कुमाऊँ के नरभक्षी’ किताब का कुमाउनी अनुवाद।
2. श्रीमद्भगवद्गीता का कुमाउनी अनुवाद।
3. सुंदरकांड-तुलसीदास कृत रामचरितमानस का कुमाउनी अनुवाद।
इस प्रकार शेरसिंह मेहता ने कुल 14 मौलिक और तीन अनूदित किताबों की रचना की। साहित्य सेवी शेरसिंह मेहता का 85 साल की उम्र में 28 नवम्बर, 2013 में निधन हुआ।
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