ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं- राष्ट्रकवि दिनकर
ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं- राष्ट्रकवि दिनकर
अंग्रेजी नववर्ष पर राष्ट्रकवि श्रद्धेय रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता:-
ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं,
है अपना ये त्यौहार नहीं,
है अपनी ये तो रीत नहीं,
है अपना ये व्यवहार नहीं।
धरा ठिठुरती है शीत से,
आकाश में कोहरा गहरा है,
बाग़ बाज़ारों की सरहद पर,
सर्द हवा का पहरा है।
सूना है प्रकृति का आँगन,
कुछ रंग नहीं, उमंग नहीं,
हर कोई है घर में दुबका हुआ,
नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं।
चंद मास अभी इंतज़ार करो,
निज मन में तनिक विचार करो,
नये साल नया कुछ हो तो सही,
क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही।
ये धुंध कुहासा छंटने दो,
रातों का राज्य सिमटने दो,
प्रकृति का रूप निखरने दो,
फागुन का रंग बिखरने दो।
प्रकृति दुल्हन का रूप धर,
जब स्नेह – सुधा बरसायेगी,
शस्य – श्यामला धरती माता,
घर -घर खुशहाली लायेगी।
तब चैत्र-शुक्ल की प्रथम तिथि,
नव वर्ष मनाया जायेगा।
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर,
जय-गान सुनाया जायेगा।।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की यह कविता हमें सोचने पर विवश करती है। अंग्रेजों ने भारतीयों को गुलाम बनाया और हम बनते चले गए। 1947 में अंग्रेज तो चले गए किंतु और आजादी के इतने वर्षों बाद भी अंग्रेजी भाषा, परंपरा, सभ्यता, संस्कृति के हम गुलाम हैं। हम अंग्रेजी परंपराओं का मोह त्याग नहीं पा रहे और हम इतने नकलची हैं कि बंदर भी हमारे नकचलीपना पर शरमाते होंगे।
बात नववर्ष की है तो भारतीय उपमहाद्वीप में 1 जनवरी से नववर्ष मनाया क्यों जाए ? सिर्फ इसलिए कि अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार आज नववर्ष है। ब्रिटेन की भौगोलिक स्थिति के अनुसार आज से वहाँ की प्रकृति- परिवेश में बदलावों की शुरुआत होती है और वहाँ ठंड का प्रकोप कम हो जाता है किंतु भारतीय उपमहाद्वीप में तो ऐसा कुछ नहीं होता। यहाँ तो आजकल अंधाधुंध ठंड रहती है। पहाड़ों में बर्फ और मैदान में कुहासा छाया रहता है। नव वर्ष जैसा कुछ एहसास ही नहीं। फिर भी हम हैप्पी न्यू ईयर, हैप्पी न्यू ईयर का राग अलापे जा रहे हैं।
हम ऐसा इसलिए कर रहे हैं कि हम जश्नवादी हो गए हैं। हमें जश्न मनाने का कोई बहाना चाहिए। रात भर दारू पीकर टुल रहें और फिर उसके बाद हैप्पी न्यू ईयर… हैप्पी न्यू ईयर का राग अलापें। ऐसा कौन-सा हैप्पी न्यू ईयर होता है भाई !
भारतीय उपमहाद्वीप में चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि को ही नववर्ष मनाया जाना चाहिए क्योंकि इस दौरान एक नई ऋतु का आगमन होता है। लगता है कि प्रकृति में कुछ नया हो रहा है। पौधों में नये कल्ले फूटते हैं। फूल खिलते हैं। चारों ओर खुश्बू ही खुश्बू फैल जाती है। फागुन के महीने में प्रकृति का रूप ही दर्शनीय हो जाता है। इसे कहते हैं नव वर्ष का आना।
इसलिए हमारा निवेदन है कि अंधानुकरण न करें और भारतीय परंपराओं को अपनाएं और उन्हें वैश्विक बनाने में अपना योगदान दें। हमारा नवसवंत्सर (विक्रमी संवत्) 2078 चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (यानी 13 अप्रैल, 2021) से शुरू हो रहा है। इस तिथि को ही नव वर्ष मनाएं। शुक्रिया।
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