मंजिल की ओर
मंजिल की ओर
रमेश कक्षा तीन में पढ़ता था। वह पढ़ने में अत्यधिक होशियार था। इसी वजह से रमेश के पिताजी उसे कक्षा तीन से सीधे कक्षा पांच में एडमिशन दिलाना चाहते थे। जब रमेश ने तीसरी कक्षा भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की तब रमेश के पिता ने विद्यालय के प्रधानाचार्य जी से कहा- “सर जी, हमारा बेटा तो पढ़ने में बहुत ही होशियार है इसीलिए उसे कक्षा तीन से सीधे कक्षा पांच में एडमिशन दिला देते तो अच्छा रहता।”
तब प्रधानाचार्य जी ने उनसे कहा- “देखिए मोहन जी, कक्षाएं सीढ़ियों के समान है। अगर हम पहली सीढ़ी के बाद दूसरी सीढी़ में पांव न रखकर सीधे तीसरी या चौथी सीढ़ी में पांव रखेंगे तो हमारे गिरने का भय बना रहेगा। इसीलिए अगर आप चाहते हैं कि रमेश की पढ़ाई अच्छे से हो तो आप उसे चौथी कक्षा में ही पढ़ाई करने दीजिए। एक के बाद एक सीढ़ी पर रखे हुए कदम अवश्य ही मंजिल तक पहुंचते हैं।”
“हां सर, आप बिल्कुल सही कह रहे हैं।” प्रधानाचार्य जी की कही हुई बातें रमेश के पिता के समझ में आ चुकी थीं।
© Dr. Pawanesh
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