नंदू की प्रेमिका
नंदू की प्रेमिका
नंदू जब गाँव से शहर आया तो उसने अल्मोड़ा में एक किराए का कमरा लिया। यहाँ उसने डिग्री कालेज में बी०ए० में एडमिशन लिया और आगे की पढ़ाई करने लगा। सच तो यह कि नंदू और मैंने साथ ही कालेज में एडमिशन लिया और एक ही कमरे में रूमपार्टनर बनकर रहने लगे। रहते भी क्यों नहीं ? आखिर एक ही गाँव के जिगरी दोस्त जो ठहरे हम।
बी० ए० फर्स्ट ईयर के दौरान ही नंदू की दोस्ती कक्षा की ही एक लड़की से हुई, जिसका नाम था आकांक्षा, लेकिन प्यार से सब उसे आशु-आशु कहकर पुकारते थे। आशु पढ़ने में भी ठीक थी, साथ ही दिखने में भी बला की खूबसूरत थी। यही कारण है कि नंदू का हृदय उस पर न्योछावर होने लगा। वह समय-असमय उसकी खूबसूरती और जुल्फों की तारीफ मेरे सामने करता रहता था।
एक दिन की बात है कक्षा में हिंदी के गुरु जी हमको कबीर का रहस्यवाद समझा रहे ठैरे। नंदू पीछे बैठकर कापी में आकांक्षा का चित्र बना रहा ठैरा।
“ये देख, ये रहे उसके बाल घटाओं जैसे।” नंदू बालों की आकृति बनाते हुए बोला।
“ये रही उसकी जुल्फें, एकदम लहरों जैसी। ये देख, उसकी आंखें एकदम हिरणी जैसी..।” वह चित्र बनाने में तल्लीन था।
उसी समय गुरूजी उसके समीप आ पहुंचे, लेकिन उसे पता ही नहीं चला। वह चित्र को गहराई से उकेरता चला जा रहा था- “ये देख, उसके होठ गुलाब की पंखुड़ियों जैसे। एकदम सुर्ख और मुलायम…!”
“क्या बात है ! शाबाश नंदन ! ऐसे ही तुम्हें समझ में आ जायेगा कबीर का रहस्यवाद… है, ना ?” दीपांक सर ने कापी में झांकते हुए कहा।
नंदू को तो जैसे सांप सूंघ गया। अब सबकी नजर उसकी ओर थी। हड़बड़ाहट में बोला- “सारी सर !”
“बेटा, पढ़ाई पर ध्यान दो। आइंदा से ऐसी हरकत मत करना मेरी क्लास में…!” दीपांक सर ने सचेत किया।
“जी सर, बिल्कुल नहीं करूंगा।” नंदू ने विनम्रता से कहा।
कक्षा की समाप्ति के बाद नंदू मेरे लिए जोर में आ पड़ा- “कैसा दोस्त है यार तू ? मैं तेरे साथ बातें कर रहा था और तूने मुझे सर आ गये करके बताया भी नहीं ?”
“अरे, मैं तुझे इशारे कर रहा था, लेकिन तू चित्र बनाने में इतना तल्लीन था कि तुझे कुछ सुनाई ही नहीं दिया।” मैंने सफाई दी।
“ओ… ये आशु भी ना मुझे पागल करके छोड़ेगी। पता नहीं कब मौका मिलेगा इससे मन की बात करने का ? ” उसने एक लंबी आह भरी।
“मिल जायेगा भाई मिल जायेगा। टेंशन मत ले। जहाँ चाह वहाँ राह…।” मैंने उसका हौसला बढ़ाने की कोशिश की।
खैर देर-सवेर नंदू को आशु से बातचीत का बहाना मिल ही गया, किंतु उसे यह जानकर काफी निराशा हुई कि आशु का चक्कर किसी और के साथ है। हालांकि उसने यह जानकर भी उससे बातचीत बंद नहीं की क्योंकि उसे उम्मीद थी कि आखिर कभी-न-कभी तो वह उसकी झोली में आकर गिरेगी, लेकिन जब उसने एक दिन आशु को एक लड़के के साथ रात में बाइक पर बैठकर जाते हुए देखा तो उसकी बची-खुची उम्मीद भी जाती रही।
© Dr. Pawanesh
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Pawan Sir
डॉ० पवनेश उत्तराखंड के बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न युवा हैं। ये शिक्षा, साहित्य और संस्कृति के प्रति समर्पित हैं। हिंदी और कुमाउनी दोनों मातृभाषाओं से इन्हें विशेष लगाव है। ये शिक्षण कार्य से जुड़े हैं और हिंदी और कुमाउनी में 27 से अधिक पुस्तकें लिख चुके हैं। कुमाऊं विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में पीएचडी उत्तीर्ण पवन सर ने पत्रकारिता में भी डिप्लोमा हासिल किया है।